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बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

हाल ही में राजस्थान के जयपुर में FICCI और कॉर्टेवा एग्रीसाइंस द्वारा राजस्थान सरकार के लिए मिलेट रोडमैप कार्यक्रम आयोजित किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति का भारतभर में प्रदर्शन करना है। फिक्की द्वारा कोर्टेवा एग्रीसाइंस के साथ साझेदारी में 19 मई 2023, शुक्रवार के दिन जयपुर में मिलेट कॉन्क्लेव - 'लीवरेजिंग राजस्थान मिलेट हेरिटेज' का आयोजन हुआ। दरअसल, इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति को प्रदर्शित करना है। विभिन्न हितधारकों के मध्य एक सार्थक संवाद को प्रोत्साहन देना है। जिससे कि राजस्थान को बाजरा हेतु एक प्रमुख केंद्र के तौर पर स्थापित करने के लिए एक भविष्य का रोडमैप तैयार किया जा सके। इसी संबंध में टास्क फोर्स के अध्यक्ष के तौर पर कॉर्टेवा एग्रीसाइंस बाजरा क्षेत्र की उन्नति व प्रगति में तेजी लाने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा बाजरा रोडमैप कवायद का नेतृत्व किया जाएगा।

इन संस्थानों एवं समूहों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

कॉन्क्लेव में कृषि व्यवसाय आतिथ्य एवं पर्यटन, नीति निर्माताओं, प्रसिद्ध शोध संस्थानों के प्रगतिशील किसानों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पैनलिस्टों ने बाजरा मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण करने एवं एक प्रभावशाली हिस्सेदारी को उत्प्रेरित करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में उन फायदों और संभावनाओं की व्यापक समझ उत्पन्न करने पर भी चर्चा की गई। जो कि बाजरा टिकाऊ पर्यटन और स्थानीय समुदायों की आजीविका दोनों को प्रदान कर सकता है। ये भी देखें: IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

श्रेया गुहा ने मिलेट्स के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त किए

श्रेया गुहा, प्रधान सचिव, राजस्थान सरकार का कहना है, कि राजस्थान को प्रत्येक क्षेत्र में बाजरे की अपनी विविध रेंज के साथ, एक पाक गंतव्य के तौर पर प्रचारित किया जाना चाहिए। पर्यटन उद्योग में बाजरा का फायदा उठाने का बेहतरीन अवसर है। इस दौरान आगे उन्होंने कहा, "स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए बाजरा का उपयोग करके विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित करके नवीन व्यंजनों और उत्पादों को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। बाजरा दीर्घकाल से राजस्थान के पारंपरिक आहार का एक अभिन्न भाग रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं राजस्थान 'बाजरा' का प्रमुख उत्पादक राज्य है। बाजरा को पानी और जमीन सहित कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है। जिससे वह भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद उत्पाद बन जाता है। जितेंद्र जोशी, चेयरमैन, फिक्की टास्क फोर्स ऑन मिलेट्स एंड डायरेक्टर सीड्स, कोर्टेवा एग्रीसाइंस - साउथ एशिया द्वारा इस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है, कि "राजस्थान, भारत के बाजरा उत्पादन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता के रूप में, अंतरराष्ट्रीय वर्ष में बाजरा की पहल की सफलता की चाबी रखता है। आज के मिलेट कॉन्क्लेव ने राजस्थान की बाजरा मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के रोडमैप पर बातचीत करने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच के तौर पर कार्य किया है। यह व्यापक दृष्टिकोण राज्य के बाजरा उद्योग हेतु न सिर्फ स्थानीय बल्कि भारतभर में बड़े अच्छे अवसर उत्पन्न करेगा। इसके लिए बाजरा सबसे अच्छा माना गया है।

वर्षा पर निर्भर इलाकों के लिए कैसी जलवायु होनी चाहिए

दरअसल, लचीली फसल, किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी और संपूर्ण भारत के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराते हुए टिकाऊ कृषि का समर्थन करना। इसके अतिरिक्त बाजरा कृषि व्यवसायों हेतु नवीन आर्थिक संभावनाओं के दरवाजे खोलता है। कोर्टेवा इस वजह हेतु गहराई से प्रतिबद्ध है और हमारे व्यापक शोध के जरिए से राजस्थान में जमीनी कोशिशों के साथ, हम किसानों के लिए मूल्य जोड़ना सुचारू रखते हैं। उनकी सफलता के लिए अपने समर्पण पर अड़िग रहेंगे। ये भी देखें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र बाजरा मूल्य श्रृंखला में कॉर्टेवा की कोशिशों में संकर बाजरा बीजों की पेशकश शम्मिलित है, जो उनके वर्तमानित तनाव प्रतिरोध को बढ़ाते हैं। साथ ही, 15-20% अधिक पैदावार प्रदान करते हैं। साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करते हैं एवं अंततः किसान उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाते हैं। जयपुर में कोर्टेवा का इंडिया रिसर्च सेंटर बरसाती बाजरा, ग्रीष्म बाजरा और सरसों के प्रजनन कार्यक्रम आयोजित करता है। "प्रवक्ता" जैसे भागीदार कार्यक्रम के साथ कोर्टेवा का उद्देश्य किसानों को सभी फसल प्रबंधन रणनीतियों, नए संकरों में प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए प्रेरित करना है। उनको एक सुनहरे भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले बाकी किसान भाइयों को प्रशिक्षित करने में सहयोग करने हेतु राजदूत के रूप में शक्तिशाली बनाना है। इसके अतिरिक्त राज्य भर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय बाजरा महोत्सव का उद्देश्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं को बाजरा के पारिस्थितिक फायदे एवं पोषण मूल्य पर बल देना है। कंपनी बाजरा किसानों को प्रौद्योगिकी-संचालित निराकरणों के इस्तेमाल के विषय में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना बरकरार रखे हुए हैं, जो उन्हें पैदावार, उत्पादकता और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ाने में सशक्त बनाता है।

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस कृषि क्षेत्र में क्या भूमिका अदा करती है

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (NYSE: CTVA) एक सार्वजनिक तौर पर व्यवसाय करने वाली, वैश्विक प्योर-प्ले कृषि कंपनी है, जो विश्व की सर्वाधिक कृषि चुनौतियों के लिए फायदेमंद तौर पर समाधान प्रदान करने हेतु उद्योग-अग्रणी नवाचार, उच्च-स्पर्श ग्राहक जुड़ाव एवं परिचालन निष्पादन को जोड़ती है। Corteva अपने संतुलित और विश्व स्तर पर बीज, फसल संरक्षण, डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के विविध मिश्रण समेत अपनी अद्वितीय वितरण रणनीति के जरिए से लाभप्रद बाजार वरीयता पैदा करता है। कृषि जगत में कुछ सर्वाधिक मान्यता प्राप्त ब्रांडों एवं विकास को गति देने के लिए बेहतर ढ़ंग से स्थापित एक प्रौद्योगिकी पाइपलाइन सहित कंपनी पूरे खाद्य प्रणाली में हितधारकों के साथ कार्य करते हुए किसानों के लिए उत्पादकता को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि, यह उत्पादन करने वालों के जीवन को बेहतर करने के अपने वादे को पूर्ण करती है। साथ ही, जो उपभोग करते हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्नति एवं विकास सुनिश्चित करते हैं। इससे संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए आप www.corteva.com पर भी विजिट कर सकते हैं।
मोटे अनाज से बने चिप्स और नूडल्स की अब होगी पूरे देश भर में सप्लाई; बुंदेलखंड के किसानों के लिए खुशखबरी

मोटे अनाज से बने चिप्स और नूडल्स की अब होगी पूरे देश भर में सप्लाई; बुंदेलखंड के किसानों के लिए खुशखबरी

बुंदेलखंड एक ऐसी जगह है जिसका आप कहीं भी नाम पढ़ते हैं तो आपके जहन में एक तस्वीर उभर आती है. और यह तस्वीर खूबसूरत नहीं होती है क्योंकि बुंदेलखंड का नाम सुनते ही पानी की किल्लत से भरी हुई जगह और फटे हाल किसानों की तस्वीरें नजर के सामने आने लगती हैं. लेकिन आपको बता दें कि यह बातें बेहद पुरानी हो गई है और अब बुंदेलखंड के किसानों के भाग बदलने वाले हैं क्योंकि अब यहां के किसानों ने मोटे अनाज से तरह-तरह के फूड आइटम बनाने और उन्हें बेचने का फैसला लिया है.  साथ ही सरकार की तरफ से भी इस कदम को प्रोत्साहित किया जाएगा. मीडिया से आ रही रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड के किसान अब सिर्फ मोटे अनाज की खेती पर ही निर्भर नहीं रहेंगे बल्कि उस अनाज की प्रोसेसिंग कर उससे ब्रेड,  नूडल, और नान खटाई जैसी चीजें बनाकर देश भर में बिक्री करेंगे जिससे न सिर्फ उनकी इनकम बढ़ेगी बल्कि लोगों को भी पोष्टिक भोजन कम कीमत पर मिलना शुरू होगा. इसके सेवन से इंसान तंदरुस्त और निरोग रहता है. सभी मोटे अनाजों पर विश्वविद्यालय में अभी शोध चल रहा है और उसके बाद ही इस पर आगे की प्रोसेसिंग शुरू की जाएगी. हम सभी जानते हैं कि लगभग 40 से 50 साल पहले हमारे पूर्वज मोटे अनाजों की बढ़-चढ़कर खेती करते थे और उन्हें दिनचर्या में इस्तेमाल भी किया जाता था लेकिन जैसे ही हरित क्रांति आई इन सभी मोटे अनाजों की जगह है और चावल जैसी फसलों ने ले ली. एक समय ऐसा आ गया कि लोगों की थाली से यह मोटा अनाज पूरी तरह से गायब ही हो गया और लोगों ने इसे पूरी तरह से काम बंद कर दिया था. लेकिन एक बार फिर से लोगों को मोटे अनाज में मिलने वाले वाइट अमीन और पोषक तत्वों के बारे में जानकारी मिलनी शुरू हो गई है और उन्हें यह भी पता चल गया है कि इसके सेवन से व्यक्ति तंदुरुस्त और निरोगी रहता है. इसीलिए एक बार फिर से मोटे अनाज की तरफ लोगों का रुझान आया है

किसान की आमदनी में होगा बढ़ावा

केंद्र सरकार भी एक बार फिर से मोटे अनाज की खेती के लिए पूरे देश भर में किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और बहुत जगह पर मोटे अनाज के बीज किसानों को मुफ्त में मुहैया करवाए जा रहे हैं. साथ इससे जुड़ी हुई कई तरह की स्कीम भी केंद्र सरकार लागू करने में लगी हुई है. ये भी पढ़े: मिलेट्स की खेती करने पर कैसे मिली एक अकाउंटेंट को देश दुनिया में पहचान कोर्णाक आर्मी लोगों को समझ में आ गया कि मोटे अनाज में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ज्यादा है और अपने भोजन में इनका सेवन करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा किसानों के पक्ष से देखा जाए तो इस अंदाज में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है इसलिए बुंदेलखंड राज्य इसके लिए एकदम सही है.  यहां पर किसान फूड प्रोसेसिंग करके अपनी आमदनी में अच्छा-खासा इजाफा कर सकते हैं. कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्राध्यापक डा.कमालुद्दीन ने भी माना है कि मोटे अनाज की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए एक नई क्रांति लेकर आएगी और इससे उनकी आमदनी में अच्छा खासा मुनाफा होने वाला  है.
मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

भारत के किसान भाइयों के लिए मिलेट की फसलें आने वाले समय में अच्छी उपज पाने हेतु अच्छा विकल्प साबित हो सकती हैं। आगे इस लेख में हम आपको मिलेट्स की फसलों के बारे में अच्छी तरह जानकारी देने वाले हैं। मिलेट फसलें यानी कि बाजरा वर्गीय फसलें जिनको अधिकांश किसान मिलेट अनाज वाली फसलों के रूप में जानते हैं। मिलेट अनाज वाली फसलों का अर्थ है, कि इन फसलों को पैदा करने एवं उत्पादन लेने के लिए हम सब किसान भाइयों को काफी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता। समस्त मिलेट फसलों का उत्पादन बड़ी ही आसानी से लिया जा सकता है। जैसे कि हम सब किसान जानते हैं, कि सभी मिलेट फसलों को उपजाऊ भूमि अथवा बंजर भूमि में भी पैदा कर आसान ढ़ंग से पैदावार ली जा सकती है। मिलेट फसलों की पैदावार के लिए पानी की जरुरत होती है। उर्वरक का इस्तेमाल मिलेट फसलों में ना के समान होता है, जिससे किसान भाइयों को ज्यादा खर्च से सहूलियत मिलती है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि हरित क्रांति से पूर्व हमारे भारत में उत्पादित होने वाले खाद्यान्न में मिलेट फसलों की प्रमुख भूमिका थी। लेकिन, हरित क्रांति के पश्चात इनकी जगह धीरे-धीरे गेहूं और धान ने लेली और मिलेट फसलें जो कि हमारी प्रमुख खाद्यान्न फसल हुआ करती थीं, वह हमारी भोजन की थाली से दूर हो चुकी हैं।

भारत मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों की पैदावार में विश्व में अव्वल स्थान पर है

हमारा भारत देश आज भी मिलेट फसलों की पैदावार के मामले में विश्व में सबसे आगे है। इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसान भाई बड़े पैमाने पर मोटे अनाज यानी मिलेट की खेती करते हैं। बतादें, कि असम और बिहार में सर्वाधिक मोटे अनाज की खपत है। दानों के आकार के मुताबिक, मिलेट फसलों को मुख्यतः दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। प्रथम वर्गीकरण में मुख्य मोटे अनाज जैसे बाजरा और ज्वार आते हैं। तो उधर दूसरे वर्गीकरण में छोटे दाने वाले मिलेट अनाज जैसे रागी, सावा, कोदो, चीना, कुटुकी और कुकुम शम्मिलित हैं। इन छोटे दाने वाले, मिलेट अनाजों को आमतौर पर कदन्न अनाज भी कहा जाता है।

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वर्ष 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष" के रूप में मनाया जा रहा है

जैसा कि हम सब जानते है, कि वर्ष 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है। भारत की ही पहल के अनुरूप पर यूएनओ ने वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष के रूप में घोषित किया है। भारत सरकार ने मिलेट फसलों की खासियत और महत्ता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2018 को “राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया है। भारत सरकार ने 16 नवम्बर को “राष्ट्रीय बाजरा दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

मिलेट फसलों को केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से बढ़ावा देने की कोशिशें कर रही हैं

भारत सरकार द्वारा मिलेट फसलों की महत्ता को केंद्र में रखते हुए किसान भाइयों को मिलेट की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। मिलेट फसलों के समुचित भाव के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया जा रहा है। जिससे कि कृषकों को इसका अच्छा फायदा मिल सके। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के स्तर से मिलेट फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिससे किसान भाई बड़ी आसानी से पैदावार का फायदा उठा सकें। सरकारों द्वारा मिलेट फसलों के पोषण और शरीरिक लाभों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण एवं शहरी लोगों के मध्य जागरूकता बढ़ाने की भी कोशिश की जा रही है। जलवायु परिवर्तन ने भी भारत में गेहूं और धान की पैदावार को बेहद दुष्प्रभावित किया है। इस वजह से सरकार द्वारा मोटे अनाज की ओर ध्यान केन्द्रित करवाने की कोशिशें की जा रही हैं।

मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों में पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में विघमान रहते हैं

मिलेट फसलें पोषक तत्वों के लिहाज से पारंपरिक खाद्यान गेहूं और चावल से ज्यादा उन्नत हैं। मिलेट फसलों में पोषक तत्त्वों की भरपूर मात्रा होने की वजह इन्हें “पोषक अनाज” भी कहा जाता है। इनमें काफी बड़ी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन-E विघमान रहता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन कैल्शियम, मैग्नीशियम भी समुचित मात्रा में पाया जाता है। मिलेट फसलों के बीज में फैटो नुत्त्रिएन्ट पाया जाता है। जिसमें फीटल अम्ल होता है, जो कोलेस्ट्राल को कम रखने में सहायक साबित होता है। इन अनाजों का निमयित इस्तेमाल करने वालों में अल्सर, कोलेस्ट्राल, कब्ज, हृदय रोग और कर्क रोग जैसी रोगिक समस्याओं को कम पाया गया है।

मिलेट यानी मोटे अनाज की कुछ अहम फसलें

ज्वार की फसल

ज्वार की खेती भारत में प्राचीन काल से की जाती रही है। भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे दोनों के तौर पर की जाती है। ज्वार की खेती सामान्य वर्षा वाले इलाकों में बिना सिंचाई के हो रही है। इसके लिए उपजाऊ जलोड़ एवं चिकिनी मिट्टी काफी उपयुक्त रहती है। ज्वार की फसल भारत में अधिकांश खरीफ ऋतु में बोई जाती है। जिसकी प्रगति के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान ठीक होता है। ज्वार की फसल विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है। ज्वार की फसल बुआई के उपरांत 90 से 120 दिन के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। ज्वार की फसल से 10 से 20 क्विंटल दाने एवं 100 से 150 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ की उपज है। ज्वार में पोटैशियम, फास्पोरस, आयरन, जिंक और सोडियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ज्वार का इस्तेमाल विशेष रूप से उपमा, इडली, दलिया और डोसा आदि में किया जाता है।

बाजरा की फसल

बाजरा मोटे अनाज की प्रमुख एवं फायदेमंद फसल है। क्योंकि, यह विपरीत स्थितियों में एवं सीमित वर्षा वाले इलाकों में एवं बहुत कम उर्वरक की मात्रा के साथ बेहतरीन उत्पादन देती हैं जहां अन्य फसल नहीं रह सकती है। बाजरा मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। बाजरा के लिए 20 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल रहता है। बाजरे की खेती के लिए जल निकास की बेहतर सुविधा होने चाहिए। साथ ही, काली दोमट एवं लाल मिट्टी उपयुक्त हैं। बाजरे की फसल से 30 से 35 क्विंटल दाना एवं 100 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है। बाजरे की खेती मुख्य रूप से गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। बाजरे में आमतौर पर जिंक, विटामिन-ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर तथा विटामिन-बी काम्प्लेक्स की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। बाजरा का उपयोग मुख्य रूप से भारत के अंदर बाजरा बेसन लड्डू और बाजरा हलवा के तौर पर किया जाता है।

रागी (मंडुआ) की फसल

विशेष रूप से रागी का प्राथमिक विकास अफ्रीका के एकोपिया इलाके में हुआ है। भारत में रागी की खेती तकरीबन 3000 साल से होती आ रही है। रागी को भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न मौसम में उत्पादित किया जाता है। वर्षा आधारित फसल स्वरुप जून में इसकी बुआई की जाती है। यह सामान्यतः आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार, तमिलनाडू और कर्नाटक आदि में उत्पादित होने वाली फसल है। रागी में विशेष रूप से प्रोटीन और कैल्शियम ज्यादा मात्रा में होता है। यह चावल एवं गेहूं से 10 गुना ज्यादा कैल्शियम व लौह का अच्छा माध्यम है। इसलिए बच्चों के लिए यह प्रमुख खाद्य फसल हैं। रागी द्वारा मुख्य तौर पर रागी चीका, रागी चकली और रागी बालूसाही आदि पकवान निर्मित किए जाते हैं।

कोदों की फसल

भारत के अंदर कोदों तकरीबन 3000 साल पहले से मौजूद था। भारत में कोदों को बाकी अनाजों की भांति ही उत्पादित किया जाता है। कवक संक्रमण के चलते कोदों वर्षा के बाद जहरीला हो जाता है। स्वस्थ अनाज सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसकी खेती अधिकांश पर्यावरण के आश्रित जनजातीय इलाकों में सीमित है। इस अनाज के अंतर्गत वसा, प्रोटीन एवं सर्वाधिक रेसा की मात्रा पाई जाती है। यह ग्लूटन एलजरी वाले लोगो के इस्तेमाल के लिए उपयुक्त है। इसका विशेष इस्तेमाल भारत में कोदो पुलाव एवं कोदो अंडे जैसे पकवान तैयार करने हेतु किया जाता है।

सांवा की फसल

जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग 4000 वर्ष पूर्व से इसकी खेती जापान में की जाती है। इसकी खेती आमतौर पर सम शीतोष्ण इलाकों में की जाती है। भारत में सावा दाना और चारा दोनों की पैदावार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडू में उत्पादित किया जाता है। सांवा मुख्य फैटी एसिड, प्रोटीन, एमिलेज की भरपूर उपलब्ध को दर्शाता है। सांवा रक्त सर्करा और लिपिक स्तर को कम करने के लिए काफी प्रभावी है। आजकल मधुमेह के बढ़ते हुए दौर में सांवा मिलेट एक आदर्श आहार बनकर उभर सकता है। सांवा का इस्तेमाल मुख्य तौर पर संवरबड़ी, सांवापुलाव व सांवाकलाकंद के तौर पर किया जाता है।

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चीना की फसल

चीना मिलेट यानी मोटे अनाज की एक प्राचीन फसल है। यह संभवतः मध्य व पूर्वी एशिया में पाई जाती है, इसकी खेती यूरोप में नव पाषाण काल में की जाती थी। यह विशेषकर शीतोष्ण क्षेत्रों में उत्पादित की जाने वाली फसल है। भारत में यह दक्षिण में तमिलनाडु और उत्तर में हिमालय के चिटपुट इलाकों में उत्पादित की जाती है। यह अतिशीघ्र परिपक्व होकर करीब 60 से 65 दिनों में तैयार होने वाली फसल है। इसका उपभोग करने से इतनी ऊर्जा अर्जित होती है, कि व्यक्ति बिना थकावट महसूस किये सुबह से शाम तक कार्यरत रह सकते हैं। जो कि चावल और गेहूं से सुगम नहीं है। इसमें प्रोटीन, रेशा, खनिज जैसे कैल्शियम बेहद मात्रा में पाए जाते हैं। यह शारीरिक लाभ के गुणों से संपन्न है। इसका इस्तेमाल विशेष रूप से चीना खाजा, चीना रवा एडल, चीना खीर आदि में किया जाता है।
मोटे अनाज यानी ज्वार, बाजरा और रागी का सेवन करने से होने वाले लाभ

मोटे अनाज यानी ज्वार, बाजरा और रागी का सेवन करने से होने वाले लाभ

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसे मोटे अनाजों में फाइबर, विटामिंस, आयरन और प्रोटीन जैसे मिनरल तत्व भरपूर मात्रा में उपस्थित होते हैं। इसके साथ ही ये अनाज ग्लूटन-फ्री सुपरफूड्स के रूप में जाने जाते हैं, जो डाइबिटीज को नियंत्रित करने में बेहद सहायता करते हैं। ऐसी स्थिति में आज हम आपको मोटे अनाज जैसे कि रागी, बाजरा और ज्वार का सेवन करने से होने वाले लाभों के विषय में बताऐंगे। विगत दीर्घकाल से ना सिर्फ भारत में, बल्कि विश्वभर में लोगों के मध्य मोटे अनाजों की चर्चा काफी तीव्र हो गई है। क्योंकि इस साल यानी कि 2023 को भारत सरकार के आह्वान पर इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स के रूप में मनाया जा रहा है। मोटे अनाजों की खेती तथा इस्तेमाल को प्रोत्साहन देने में जुटी भारत सरकार लगातार इस बात के प्रयास में जुटी है, कि मोटे अनाजों की पहुंच भारत में हर घर तक बने। साथ ही, मोटे अनाज का सेवन करने से होने वाले लाभों के विषय में लोगों को जानकारी मिल सके।

श्री अन्न यानी मोटे अनाज का सेवन करने से होने वाले लाभ

दरअसल, ये तो स्पष्ट तौर पर जाहिर है, कि ज्वार, बाजरा तथा रागी जैसे मोटे अनाज विटामिंस, आयरन, प्रोटीन और फाइबर जैसे मिनरल तत्वों से भरपूर होते हैं। साथ ही, ये अनाज ग्लूटन-फ्री सुपरफूड्स के रूप में जाने जाते हैं, जो कि डाइबिटीज को नियंत्रित करने में बेहद सहायता करते हैं। अगर हम बात करें ग्लूटन की तो, ग्लूटन एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो गेहूं, जौ एवं राई में पाया जाता है। इसके साथ ही ग्लूटन-फ्री डाइट सेहत में सुधार लाने, वजन घटाने एवं एनर्जी बढ़ाने में सहायता करती है।

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साथ ही, जिन व्यक्तियों को हृदय संबंधित बीमारियां हैं, उनके लिए मिलेट्स खाना लाभदायक साबित हो सकता है। क्योंकि ज्वार और बाजरा खाने से ब्लड सर्कूलेशन काफी अच्छा रहता है। ऐसी स्थिति में यदि आप दिल के मरीज हैं, तो आप ज्वार और बाजरा का सेवन अवश्य करें। इसके अतिरिक्त पेट में कब्ज हो अथवा एसिडिटी, पाचन शक्ति को बढ़ाने में भी श्री अन्न काफी लाभदायक साबित होता है। बतादें, कि मोटे अनाजों को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में भी जाना जाता है। अस्थमा, मेटाबॉलिज्म और डायबिटीज जैसी विभिन्न स्वास्थ्य परेशानियों को दूर करने में मोटे अनाजों को शानदार माना गया है।

मोटे अनाजों का सेवन इन बीमारियों से ग्रसित लोग ना करें

हाइपोथायरायडिज्म, जिसको अंडरएक्टिव थायरॉयड ग्रंथि के नाम से भी जाना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो उन्हें मोटे अनाजों का सेवन करने से बचना चाहिए। क्योंकि, मोटे अनाज में गोइट्रोजेन होता है जो आयोडीन के अवशोषण में बाधा पैदा कर सकता है। हालांकि, जब खाना पकाया जाता है, तो पकने की वजह से इसमें मौजूद गोइट्रोजेन की मात्रा कम हो सकती है। परंतु, इसको पूर्णतय समाप्त नहीं किया जा सकता।